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Thursday 1 September 2011

ख़ामोशी

आज शायद मुझे कुछ ज्यादा ही हिंदुस्थानी होने पे गर्व हो रहा है. इसलिय सोचा की हिंदी में लिखू.
वैसे मैं हमेशा से ही हिंदुस्थानी था और रहूँगा.
पर कुछ दरिंदो ने कसम खा ली है की वोह बार बार हमें  क्षेत्र के नाम लेकर हमें झुकाता रहेगा और हम ख़ामोशी से झुकते रहेंगे.
ये तो गलत बात हुई ना - बर्दाश्त की भी कोई सीमा होती हैं !
आज हमारी इसी कमजोरी के कारण हमारे पडोसी  जब चाहे हमारे घर में घुस के हमें मार जाते है और हम कुछ कर नहीं पाते है.
शायद हमे परोसी से ज्यादा अपने घरवालों से ज्यादा डर लगने लगा हैं.
पर हमे इन लोगों को याद दिलाने की सख्त जरुरत है की हम पहले हिंदुस्थानी और फिर मराठी , बंगाली , पंजाबी, मद्रासी या जो भी हो.
महाराष्ट्र में ना जाने क्यूँ इन दरिंदों को लगते हैं की मराठी मानुष हैं और बाकि सब जानवर हैं.